रूपाली टंडन जी की लिखी कविता है शादीशुदा महिलाओ को कुछ बाते अचछी नहीं लगती, पर वे किसी से कहती नहीं, उन्ही एहसासों को इकट्ठा करके एक कविता लिखी है-
तुम्हे बहुत पयार से खिलाती हूं,
पर तुम्हारे जूठे बर्तन उठाना
मुझे अच्छा नही लगता !
कई वर्षो से हम तुम साथ रहते हैं,
लाजिम है कि कुछ मतभेद तो होगे,
पर तुम्हारा बच्चों के सामने चिल्लाना मुझे अच्छा नही लगता !
हम दोनों को ही जब किसी फंक्शन में जाना हो,
तुम्हारा पहले कार में बैठ कर यू हार्न बजाना
मुझे अच्छा नही लगता ,
जब मै शाम को काम से थक कर घर वापिस आती हूं,
तुम्हारा गीला तौलिया बिस्तर से उठाना,
मुझे अच्छा नही लगता !
माना कि तुम्हारी महबूबा थी वह कई बरसों पहले,
पर अब उससे तुम्हारा घंटों बतियाना
मुझे अच्छा नही लगता !
माना कि अब बच्चे हमारे कहने में नहीं हैं,
पर उनके बिगड़ने का सारा इल्जाम मुझ पर
लगाना,
मुझे अच्छा नही लगता !
अभी पिछले वर्ष ही तो गई थी,
यह कह कर तुम्हारा,
मेरी राखी डाक से भिजवाना
मुझे अच्छा नही लगता !
पूरा वर्ष तुम्हारे साथ ही तो रहती हूँ,
पर तुम्हारा यह कहना कि,
जरा मायके से जल्दी लौट आना,
मुझे अच्छा नही लगता !
तुम्हारी माँ के साथ तो
मैने इक उम्र गुजार दी,
मेरी माँ से दो बातें करते
तुम्हारा हिचकिचाना,
मुझे अच्छा नहीं लगता !
यह घर तेरा भी है हमदम,
यह घर मेरा भी है हमदम,
पर घर के बाहर सिर्फ
तुम्हारा नाम लिखवाना,
मुझे अच्छा नही लगता !
मै चुप हूँ कि मेरा मन उदास है,
पर मेरी खामोशी को तुम्हारा,
यू नजर अंदाज कर जाना
मुझे अच्छा नही लगता !
पूरा जीवन तो मैने ससुराल में गुजारा है,
फिर मायके से मेरा कफन मंगवाना
मुझे अच्छा नहीं लगता !
अब मै जोर से नही हंसती,
जरा सा मुस्कुराती हूं,
पर ठहाके मार के हंसना
और खिलखिलाना
मुझे भी अच्छा लगता है !
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें