लगभग 20 साल बाद रामू अपनी सारी पढ़ाई पूरी कर के अपने गांव आया। अब रामू गांव का गरीब लड़का ना होकर एक डॉक्टर बन गया था। घर आते ही रामू दौड़ कर अपने दोस्त मोहन से मिलने गया, उसके घर पहुंचते ही रामू बहुत ही दुखी हुआ और अपने दोस्त मोहन को गले लगाकर रोने लगा। मोहन की दशा बहुत बुरी हो चुकी थी गांव मे वह बहुत ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाया और गरीबी के कारण कम उम्र से ही मजदूरी करने लगा था। रामू से मिलकर मोहन भी बहुत ख़ुश हुआ।
रामू अब एक डॉक्टर बन चूका था अगर वह चाहता तो शहर जाकर खूब पैसा कमाता मगर उसने ऐसा नहीं किया। रामू गांव मे ही रहकर अपने दोस्त मोहन और पुरे गांव वालों की सेवा करने का मन बना लिया। रामू ने गांव के बगल मे ही एक छोटा सा अस्पताल खोल दिया और अस्पताल का सारा प्रबंधन मोहन को दे दिया। रामू और मोहन दोनों ने खूब मन लगा कर काम किया और कुछ ही सालों मे एक छोटा अस्पताल बहुत बड़ा अस्पताल बन गया। इस प्रकार से रामू ने अपने दोस्त मोहन को गरीबी से निकाला ही नहीं अपितु साथ मे समाज सेवा भी किया।
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