सही भी है आषाढ़ के आते-आते हर कोई इंद्रदेवता को याद कर बारिश के लिए मनुहार करने लगता है। मगर जैसे ही सावन आता है तो हर मन झूमने लगता है, नई तरंगें उठने लगती हैं। बड़े हों या छोटे सभी प्रसन्न दिखाई देने लगते हैं। हर उम्र के लोगों के लिए बारिश का एक अलग ही उत्साह रहता है। इस समय स्कूल खुल चुके होते हैं और बादल भी लगातार आसमान में अपना डेरा डाले रहते हैं। यानी स्कूल के साथ-साथ बारिश की मस्ती भी बच्चों के साथ होती है।
यूं तो आम परिवार में बारिश के शुरुआती दिन घर की महिलाओं के लिए इतने सहज नहीं होते। ठंडे मौसम की वजह से सुबह स्कूल के लिए बच्चों को उठाने की मशक्कत। फिर बारिश के चलते बस स्टॉप तक बच्चों को छोड़ने की व्यवस्था। केवल इतना ही नहीं यही वह समय है जब बाजार में सब्जियां-फल महंगे हो जाते हैं या कम आते हैं, तिस पर बच्चों के खाने के नखरे! भले ही घर से बाहर का तापमान मोहक हो, मगर मम्मियों के लिए तो कई सारी चुनौतियां खड़ी होती हैं। शायद वे यह यह सोच भी नहीं पाती कि मौसम बदला है क्या?
यह मौसम जहां मन को सुकून और शरीर को राहत देने वाला महसूस होता है वहीं कुछ समस्याएं भी होती हैं जिनका सामना तो करना ही पड़ता है। जैसे घर से बाहर काम के लिए जाने वाले मम्मी और पापा का मन अजीब आशंका से भर जाता है। यदि एक घंटे लगकर भी बादल बरस गए तो गली-मुहल्ले, सड़क, फ्लाई ओवर, पगडंडी, बगीचे सभी जगह ऐसा पानी भरेगा कि सड़क दरिया बन जाएगी व सभी कुछ थम जाएगा।
पता नहीं कब, कहां, कितनी देर जाम में फंसना पड़े और यदि अपने वाहन में पानी भर गया तो उसकी रिपेयरिंग की नई मुसीबत। घर से निकलते ही इस तरह की अनिश्चितता-सी मन को बैचेन किए रहती है। ऐसे में यदि बच्चे बाहर हों तो माता-पिता की चिंता भी लाजिमी है। वे हर पल बस यही प्रार्थना करते हैं कि कुछ देर के लिए बारिश थमे और बच्चे सकुशल घर लौट आएं।
वर्षा के स्वागत के लिए भले ही दिल व दिमाग ऊपर वाले को धन्यवाद करना चाहता हो, लेकिन बारिश के साथ आई कई तरह की मुसीबतें, कीड़े-मकोड़े, नालियों के उफनने से बाहर आ गईं गंदगियां, दीवारों में उपजी सीलन देख हम कई बार कहने लगते हैं कि ये आफत कहां से आ गई?
आनंद का पर्व है यह
वहीं दूसरा पहलू देखें तो बारिश होते ही हैरान-परेशान पशु-पक्षी आनंदित हो जाते हैं। किसान से लेकर सरकार तक आश्वस्त हो जाते हैं कि आने वाले दिन सुख के होंगे। हर दूसरे घर में तले हुए पकौड़े-मंगोड़ों का दौर चलने लगता है। गृहिणियां खुश हो जाती हैं कि अब बिजली के बिल कुछ कम आएंगे व कुछ ही दिनों में सब्जी-फल के दाम भी कम हो जाएंगे।
परिवार व प्रकृति को भले ही कुछ दिनों की थोड़ी-सी दिक्कतें आती हों, लेकिन यह मौसम उम्मीदों व आश्वासनों का होता है। बारिश के ये महीने साल के शेष महीनों की सुख-शंाति और आनंद की गारंटी भी तो होते हैं। कुल मिलाकर सावन एक आनंद का पर्व है, जो अपनी बूंदों में हमें सराबोर कर मदमस्त करना चाहता है और हम भी उसमें खो जाने को लालायित रहते हैं।
बच्चों के लिए तो बस मौज-मस्ती
बच्चों के लिए मानसून के दिन मस्ती व आनंद के होते हैं। कभी बारिश को लेकर स्कूल न जाने के बहाने बनाए जाते हैं तो कभी जबरदस्ती स्कूल पहुंचने की जिद की जाती है ताकि दोस्तों के साथ मिलकर ध्ामाचौकड़ी की जाए। सही भी है बारिश में भीगने और कीचड़ में छप-छप करने के मजे लेना भी तो इन दिनों में ही अच्छा लगता है। मगर ऐसा नहीं है कि बच्चों के लिए इस मौसम में आनंद ही आनंद है।
प्रकृति की हरियाली देखकर उनका मन तो प्रसन्ना रहता है लेकिन बदलते मौसम के साथ आने वाली बीमारियां, बारिश में खान-पान में गंभीर सतर्कता की आवश्यकता और घर वालों व टीचर्स की रोकटोक उन्हें असहज लगती है। बच्चे चाहते हैं कि जब तेज पानी बरस रहा हो तब छुट्टी मारकर भीगा जाए, लेकिन बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि भीगने से जुकाम व बुखार हो जाएगा।
मम्मी को चिंता रहती है कि धूप तो बिल्कुल नहीं निकल रही है और इतने सारे कपड़े भीग गए तो सूखंगे कैसे? घर वाले इसके लिए भी आशंकित रहते हैं कि गीले कपड़े या जूते पहनने से खारिश-खुजली की संभावनाएं बढ़ीं तो डॉक्टर का खर्च व घर का माहौल दोनों ही बिगड़ेगा।
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