गणेश नमस्कार से होता है चमत्कार...
कैसे करें श्री गणेश का ध्यान
🤗ली-प्रतिक भट्ट
यूं तो किसी भी पूजा से पहले भगवान गणेश की पूजा करने का विधान और परंपरा है, लेकिन गणेशजी को प्रसन्न कर अपने मनोरथ पूर्ण किए जा सकते हैं। भाद्रपद माह तो वैसे भी गणेशजी का मास माना जाता है। तंत्र शास्त्रों में गणेशजी के कई रूप बतलाए गए हैं, जिनकी उपासना करने सभी सभी अभीष्ट सिद्ध होते हैं। तंत्र शास्त्र में वर्णित गणेशजी के रूप हैं...
1. सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्ण, 5. लंबोदर, 6. विकट, 7. विघ्ननाशक, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचन्द्र, 12. गजानन, 13. विघ्नेश, 14. परशुपाणि, 15. गजास्य और 16. शूर्पकर्ण ।
चमत्कार को नमस्कार करना मा न व स्वभाव है, लेकिन कल्पना करिए यदि नमस्कार से ही चमत्कार हो जाए तो... देवों में अग्रगण्य गणेश को केवल नमस्कार कर इसका प्रभाव जाना जा सकता है और मनोकामना पूर्ण की जा सकती है। गणेश अथर्वशीर्ष का अर्थ समझकर और पाठ करने मात्र से चमत्कार का अनुभव किया जा सकता है।
गणेश जी का बीजमंत्र (गं) और (ग:) है। इसका उच्चारण 'गम्' किया जाता है। ऐसा बतलाया गया है कि तंत्र शास्त्र में नमस्कार मंत्रों का कोई विपरीत असर नहीं होता। अत: ॐ गं नम: या ॐ गं ॐ का जाप किया जा सकता है।
' गं' या 'ग:' का विनियोग इस प्रकार है...
ॐ अस्य श्री गणेश मंत्रस्य गणक ऋषि:,
निवृत्त छन्द:, श्री विघ्नराज देवता, प्रसाद सिद्धयर्थे विनियोग:,
या मम मनोभिलाषित सिद्धयर्थे विनियोग: ।
गं शब्द से कर (हाथ) तथा अंग न्यास करें।
ॐ गं अंगुष्ठाभ्यां नम: - हृदयाय नम:।
ॐ गं तर्जनीभ्यां नम: - शिरसे स्वाहा।
ॐ गं मध्यमाभ्यां नम: - शिकाये वषट्।
ऊँ गं अनामिकाभ्यां नम: - कवचाय हुम्।
ॐ गं कनिष्ठिकाभ्यां नम: - नैत्रत्रयाय वौषट।
ॐ गं करतल करपृष्ठाभ्यामं नम : - अस्त्राय फट्।
शरीर के जिन अंगों का उल्लेख किया गया है वहां छुएं या ध्यान करें। अस्त्राय फट में दाहिने हाथ की तर्जनी एवं मध्यमा मुट्ठी से खोलकर सीधी रखें तथा हाथ को सिर पर से घुमाकर बाएं हाथ की हथेली पर दोनों अंगुली जोर मारें।
गणपति जी का ध्यान...
' सिन्दूर के समान रक्त वर्ण वाले, जिन्होंने अपने कर कमलों में हस्तिदंत, पाश, अंकुश तथा वरमुद्रा धारण की हुई है, त्रिनेत्र, तंदुल पेट वाले, शुण्डाग्र में बीजपुर धारण किए हुए, भाल पर चंद्र है। हस्तिमुख जो मदजल से परिपूर्ण है। वे नागराज से विभूषित हैं। रक्त अंगराज से लेपित मनोहर मैं प्रणाम करता हूं।'
' गं' बीजमंत्र का पुरश्चरण चार लाख जप है। इसके पश्चात 'गं स्वाहा' बोलकर (40000) दशांस हवन करें। इसका दशांस (4000) तर्पण, दशांस (400) मार्जन, दशांस (40) ब्राह्मण भोज कराना चाहिए।
हवन सामग्री में बराबर मात्रा में मोदक, चिवड़ा, लावा, सत्तू, ऊख, नारियल, शुद्ध तिल, केले, जो गशेण जी के नैवेद्य भी है। तर्पण जल में गुड़ मिलाकर करें, इस जल को गुड़ोदक भी कहते हैं। तर्पण रात्रि में 444 की संख्या में करना चाहिए। इस तरह पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ भगवान गणेश की आराधना कर आप अपने मनोरथ पूर्ण कर सकते हैं।
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